Sunday, January 24, 2010

में बदल सकती...

में बदल सकती तो अपनी किस्मत बदलती ,

में बदल सकती तो क्या क्या नहीं बदलती हर मकसत हर लम्हा बदलती जो किसीको दर्द देता हो

में बदल सकती तो कोई बुराई न रहने देती जिससे दुखता हो किसीका दिल वो बात न होने देती

में बदलती सकती तो रास्ते बदलती जिसे लगती हो मंजिल दूर वो राह करीब कर देती

में बदलती तो नजाने क्या बदलती पर हर वो शक्सियत बदलती जो बुराई दिखाती हो

में बदल सकती तो अपने ब्रहम को बदलती खुशियों के इंतजार में गुज़री रातो को बदलती

में बदल सकती तो लोगो की सोच को बदलती अनकही जुबन सी बातों को बदलती

में बदल सकती तो हर डर को बदलती अपनों के ऊपर गेरो की एहमियत को बदलती

में बदल सकती तो शयद सबसे पहले खुदको ही बदलती अपनी ही सोच को बदलती
में बदल सकती तो क्या क्या न बदलती अकेलेपन में किसीकी गुज़री रात को बदलती

में बदल सकती तो खुशनुमा हर ज़िन्दगी को करती खुद भी मुस्कुराती औरो का भी दिल; न दुखाती ,

में बदल सकती तो अपनों की उनं गलतियों को बदलती जो दर्द का रास्ता दिखाती हे ]

मत पूछो में बदल सकती तो क्या क्या बदलती हर कांटे को फूल में बदलती

सचमें अगर बदल सकती तो सबसे पेहले अपनी किस्मत को बदलती .......................

1 comment:

  1. kistmat ko to insaan khud hi badlta hai ji...all the best !! beautiful poem !!!

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